उर्दू कविता (justice Katju)


 Justice Katju


भारत के रहबरों को पेश-ए-ख़िदमत 
गुमाँ यह था फ़क़त इंसान फ़रोक्त होते हैं 
तेरे जहां में तो यज़दाँ फ़रोक्त होते हैं 
सुराहियों से हँसी गर्दनें भी दिखती थीं 
लबों के रस भी मेरी जां फ़रोक्त होते हैं 
यह इन्तिक़ाम का ज़माना है 
नसीब-ए-हिस में तो उसियाँ फरोक्त होते हैं 
जिस मर्मरों सेहबा से जिनकी साख़्त हुई 
बड़ी जगह बहुत अरज़ाँ फरोक्त होते हैं 
खिज़ा का वहम मिटा दो कि अब तक कसरत से 
सदा बहार गुलिस्तां फ़रोक्त होते हैं 

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