तेल एवं प्राकृतिक गैस की कीमतों में वृद्धि और भारत पर इसका प्रभाव, भारत के हितों पर अन्य देशों की नीतियों और राजनीति का प्रभाव।
स्त्रोत-इंडियन एक्सप्रेस,ANI,दृष्टि
चर्चा की वजह ?
• हाल ही में अमेरिका ने रूसी तेल, तरलीकृत प्राकृतिक गैस और कोयले के आयात पर प्रतिबंध लगाने की घोषणा की है।
• इस कदम का उद्देश्य रूस को यूक्रेन में युद्ध जारी रखने हेतु आवश्यक आर्थिक संसाधनों से वंचित करना है।
• अमेरिकी घोषणा के क्रम में अंतर्राष्ट्रीय तेल की कीमतें 14 वर्षों के उच्च स्तर पर पहुँच गईं, जिसमें ब्रेंट क्रूड फ्यूचर 139.13 अमेरिकी डॉलर इंट्राडे के स्तर पर पहुँच गया।
• भारत में पेट्रोल और डीजल के दामों में वृद्धि कर दी गई है और कुल 137 दिनों के बाद इनके दाम बढ़ाए गए हैं.दिल्ली मे पेट्रोल के लिए अब 96.21 रुपये / लीटर चुकाने होंगे. जबकि डीजल की कीमत 87.47 रुपये / लीटर हो गई है तथा घरेलू गैस LPG के दाम भी 50 रुपये बढ़ गए हैं ।
रूस के ऊर्जा निर्यात को लक्षित करने का कारण:
सबसे बड़ा तेल उत्पादक:
रूस दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा तेल उत्पादक है, जो केवल सऊदी अरब और संयुक्त राज्य अमेरिका से पीछे है।पेरिस स्थित अंतर-सरकारी अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (IEA) के अनुसार, जनवरी 2022 में रूस का कुल तेल उत्पादन 11.3 मिलियन बैरल प्रतिदिन (mb/d) था, जिसमें से 10mb/d कच्चा तेल था।
कच्चे और तेल उत्पादों का विश्व का सबसे बड़ा निर्यातक:
रूस कच्चे और तेल उत्पादों का दुनिया का सबसे बड़ा निर्यातक है, जिसने दिसंबर 2021 में 7.8 mb/d तेल की शिपिंग की थी और साथ ही यह सऊदी अरब के बाद दुनिया में कच्चे तेल का दूसरा सबसे बड़ा आपूर्तिकर्त्ता भी है।
प्राकृतिक गैस का प्रमुख निर्यातक:
रूस प्राकृतिक गैस का भी एक प्रमुख निर्यातक है और वर्ष 2021 में यूरोप (और ब्रिटेन) में खपत होने वाली गैस का लगभग एक-तिहाई या 32% की आपूर्ति रूस ने की थी।
वर्ष 2021 में तेल और गैस की बिक्री से प्राप्त होने वाला राजस्व पिछले वर्ष रूस के कुल राजस्व (25.29 ट्रिलियन रूबल) का 36% हिस्सा था।
कुछ महत्वपूर्ण तथ्य
रूस और वैश्विक कच्चे तेल की कीमतों पर प्रभाव:
यह देखते हुए कि रूस ने वर्ष 2021 में कच्चे तेल उत्पादों का प्रतिदिन 7 मिलियन बैरल से अधिक का निर्यात किया है, अमेरिकी द्वारा लगाया गया प्रतिबंध रूस के तेल निर्यात को लगभग 10 प्रतिशत तक प्रभावित करेगा।
इसके अलावा दुनिया भर में इसके सभी सहयोगी और भागीदार वर्तमान में इसके आयात प्रतिबंध में शामिल होने की स्थिति में नहीं है।
अपने सहयोगियों के बीच यूके ने घोषणा की है कि वह वर्ष 2022 के अंत तक रूसी तेल और तेल उत्पादों के आयात को समाप्त कर देगा।
यदि शेष यूरोप और चीन, रूसी तेल एवं गैस पर आयात प्रतिबंध में शामिल नहीं होते हैं तो भी रूस की अर्थव्यवस्था पर इसका कोई गंभीर प्रभाव नहीं पड़ेगा।
चीन जो कि दुनिया में सबसे बड़ा कच्चे तेल का आयातक है, रूस का सबसे बड़ा खरीदार है।
आर्थिक सहयोग और विकास संगठन के यूरोपीय सदस्यों (OECD यूरोप) को सामूहिक रूप से रूस द्वारा कुल तेल निर्यात का लगभाग 60% तेल निर्यात किया जाता है।
पहले से ही तंग तेल बाज़ार को इसके बेंचमार्क यूराल क्रूड (Urals crude) की लगभग 1.5 mb/d (प्रति दिन लाख बैरल) की रूसी आपूर्ति और लगभग 1 1.5 mb/d परिष्कृत उत्पादों के नुकसान के साथ किनारे पर धकेल दिया गया था।
यूराल क्रूड रूस में कच्चे तेल का सबसे आम निर्यात ग्रेड है और यूरोप में मीडियम सोर क्रूड मार्केट (Medium Sour Crude Market) के लिये एक महत्त्वपूर्ण बेंचमार्क है।
भारत पर इसका प्रभाव
भारत, अमेरिका और चीन के बाद 5.5 मिलियन बैरल प्रतिदिन के साथ दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा तेल उपभोक्ता है।
देश में तेल की मांग प्रतिवर्ष 3-4% की दर से बढ़ रही है।
इस अनुमान के अनुसार एक दशक में भारत प्रतिदिन लगभग 70 लाख बैरल की खपत कर सकता है।
भारत अपना 85% तेल लगभग 40 देशों से आयात करता है, जिनमें से अधिकांश मध्य-पूर्व और अमेरिका से आता है।
रूस से भारत अपनी आपूर्ति का 2% आयात करता है, जिसमें तेल भी शामिल है जिसे वह शोधन के बाद पेट्रोलियम उत्पादों में परिवर्तित करता है।अत: यह रूसी तेल नहीं बल्कि सामान्य रूप से तेल और इसकी बढ़ती कीमतों ने भारत को चिंतित किया है।
आगे की राह
वर्तमान में तेल की कीमतें तेजी से बढ़ रही हैं क्योंकि दुनिया भर के निवेशक अमेरिकी फेडरल रिज़र्व के नतीजे का इंतजार कर रहे हैं तथा ऊर्जा व्यापारी चीन की मांग पर नज़र रखे हुए हैं जहांँ कोविड-19 मामलों के सामने आने के बाद से चीनने अपने देश के कुछ हिस्सों में लॉकडाउन लगाना शुरू कर दिया है।
यदि यू.एस. फेडरल रिज़र्व द्वारा ब्याज दरों में वृद्धि की जाती है, जैसा कि व्यापक रूप से अपेक्षित है तो डॉलर के मज़बूत होने की संभावना है, जिससे भारत जैसे शुद्ध ऊर्जा आयातक देशों के लिये तेल का आयात महंँगा हो जाएगा।
भारत विश्व का तीसरा सबसे बड़ा ऊर्जा की खपत और ऊर्जा आयात करने वाला देश है, वेनेज़ुएला और ईरान से कच्चे तेल की आपूर्ति फिर से शुरू होने के साथ-साथ ओपेक+देशों (OPEC+ Nations) से उच्च उत्पादन की उम्मीद की जा रही है ताकि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर तेल की कीमतों को कम करने में मदद मिल सके जो कि कई वर्षों के उच्च स्तर पर पहुंँच गई हैं।
यह गैर-पारंपरिक आपूर्तिकर्त्ता देशों से ईंधन को स्थानांतरित करने हेतु आवश्यक बीमा और माल ढुलाई जैसे पहलुओं पर विचार करने के बाद रियायती कीमतों पर कच्चे तेल को बेचने के रूस के प्रस्ताव का भी मूल्यांकन करेगा।
लेख – अभय कुशवाहा
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