केजीएफ की वो हकीकत,जो शायद ही किसी को पता हो ,जानिए क्या है पूरी खबर




नई दिल्ली KGF वो नाम है जो भारत के हर बच्चे की जुबान पर है।  लेकिन लोग इन तीन शब्दों के पीछे के इतिहास से वाकिफ नहीं हैं।  2018 में जब फिल्म "KGF : CHAPTER 1" आई तो पूरा भारत इसका दीवाना हो गया।  केजीएफ सिर्फ एक फिल्म बनकर नहीं रह गई, बल्कि केजीएफ के लोगों की पहचान बन गई।  यह बॉक्स ऑफिस पर ब्लॉकबस्टर साबित हुई थी।  लोग इसके सीक्वल का बेसब्री से इंतजार कर रहे थे और वह सीक्वल 24 घंटे से भी कम समय में इसे भारत के सिनेमाघरों में पेश किया जाने वाला है।  इसे लेकर लोगों में खासा उत्साह है और उन्होंने टिकट की प्री-बुकिंग कर ली है। आइए अब हम आपको KGF के इतिहास के बारे में बताते हैं।

 KGF का मतलब KOLAR GOLD FIELDS है।  KGF कर्नाटक के कोलार जिले से 30 किलोमीटर दूर स्थित है। यह भी बताया जाता है कि केजीएफ भारत की सबसे बड़ी सोने की खदानों में से एक होता था और भारत का लगभग 95% प्रतिशत सोना इन्हीं खदानों से निकाला जाता था।  दुर्भाग्य से ये खदानें 22 साल पहले बंद हो गईं।

 ये खदानें ब्रिटिश काल से संचालित हैं।  इन सोने की खदानों की स्थापना एक सेवानिवृत्त ब्रिटिश सैनिक माइकल फिट्जगेराल्ड लावेल ने करी थी।  उन्होंने 1804 की एक रिपोर्ट पढ़ी जिसमें कोलार के स्थानीय लोगों ने बताया था कि वे अपने खेतों की जुताई करते समय कभी-कभी सोना प्राप्त करते हैं।  इसे पढ़कर उनकी उस क्षेत्र में भी रुचि हो गई और अंत में उन्होंने वहां खनन कार्य स्थापित किया। कुछ वर्षों के बाद, 1880 में जॉन टेलर एंड संस नाम की एक ब्रिटिश कंपनी ने इन खनन कार्यों को संभाला और 1956 तक KGF का संचालन किया। अपने संचालन काल के दौरान, केजीएफ में बिजली, पानी की आपूर्ति, बुनियादी ढांचे, अस्पतालों, क्लबों आदि जैसी सभी सुविधाएं थीं। कई ब्रिटिश अधिकारी और इंजीनियर कोलार में रहने लगे क्योंकि उन्होंने केजीएफ में उच्च पद के अधिकारियों के रूप में काम करना शुरू कर दिया था।  उन्होंने सुंदर मकान और घर बनाए। उस समय जब भारत के कई बड़े जिलों में बिजली का नामोनिशान नहीं था, तब कोलार में बिजली भरपूर रूप से उप्लब्ध कराई जा रही थी। इसलिए बहुत से लोग कहते हैं कि कोलार को "मिनी इंग्लैंड" का उपनाम भी मिला।

 हालांकि, गरीब खनिकों के लिए ये आकर्षक  सुविधाएं उपलब्ध नहीं थीं।  वे गंदगी से ढकी कुली गलियों के  10 by 10 घरों में रहते थे, जो बड़े ब्रिटिश हवेलीयों के विपरीत बिजली और पानी जैसी सुविधाओं से रहित थे।  जब ये खनन कार्य 1880 के दशक में शुरू हुए, तब ये बेहद जोखिम भरे थे। उस समय इस खादानों में नीचे आने - जाने के लिए लकडिय़ों की सीढ़ी बनाई गयी थी। आज की तरह उचित और उन्नत सुरक्षा उपकरणों के बिना खनिकों को खदानों में गहराई तक जाना पड़ता था।  तब नमी का स्तर 98% हुआ करता था और तापमान लगभग 50-55 डिग्री सेल्सियस हुआ करता था। इन स्थितियों में भी, केजीएफ में काम करना जारी रहा।


सन् 1972 में, भारत गोल्ड माइन्स लिमिटेड ने KGF को अपने अधिकार में ले लिया।


जब 1900 के दशक में 1 किलोमीटर की गहराई पर सोना आसानी से उपलब्ध था, वह 1980 के दशक में बढ़कर 3 किलोमीटर हो गया। यह भी कहा जाता है कि 1881 में 1 टन खनन के बाद 47 ग्राम सोना निकलता था, जो अंततः 1990 में घटकर 3 ग्राम प्रति टन रह गया। इससे सरकार के लिए उत्पादन की लागत बहुत अधिक हो गई।  इसलिए, सरकार ने 28 फरवरी, 2001 को केजीएफ को अचानक बंद कर दिया। यह भी कहा जाता है कि खदानों को बंद करने के लिए कोई उचित वैज्ञानिक मापदण्ड का पालन नहीं किया गया था। जो वहां के स्थानीय लोगों के लिए मुसीबतों का पैगाम बनकर आई थी।


 खनन के कचरे को खुलेआम माइन फील्ड में फेंक दिया गया और उस कचरे ने करीब 40 मीटर ऊंचे पहाड़ों का रूप ले लिया।  इस कचरे में साइनाइड, सिलिका, कॉपर सल्फेट जैसे हानिकारक रसायन होते हैं जिसकी वजह से जब बारिश का पानी इन कचरे के पहाड़ों से कोलार के खेतों में आता है, तो भूजल भी दूषित होता है । जिस कारण वहाँ के किसानों ने सरकार से अपनी भूमि के बंजर होने की शिकायत भी की है। वर्तमान में इस क्षेत्र में लगभग 2,60,000 लोग रहते हैं। इनमें ज्यादातर वे लोग हैं जो केजीएफ में खनिक हुआ करते थे। साइनाइड के टीले से निकलने वाली महीन धूल के कारण खनिकों को फेफड़ों का कैंसर, सिलिकोसिस, स्किन डीसिज़ आदि बिमारीयाँ होने लगी हैं। कहा जाता है कि केजीएफ में 120 वर्षों के दौरान लगभग 6000 मौतें हो चुकी हैं। खनन कार्य बंद होने के कारण उनके पास उचित मात्रा में पानी या बिजली नहीं है। वे झुग्गी-झोपड़ी में रहते हैं और वहाँ के कई घरों में शौचालय भी नहीं हैं। लोगों का कहना है कि खदानें बंद होने के बाद उनके लिए रोजगार के कोई अवसर पैदा नहीं हो रहे हैं। वे बेरोजगार हैं और उन्हें रोज़ी - रोटी के लिए प्रतिदिन ट्रेन से बेंगलुरु आना - जाना पड़ता है। सरकार ने वहां के पर्यावरण को बचाने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाए हैं और इससे वहां के लोग नाराज़ हैं। कभी सोने में चमकने वाला केजीएफ अब कचरे से धुंधला हो गया है।

यह भी कहा जाता है कि केजीएफ फिल्म थंगम नाम के एक गैंगस्टर के जीवन से प्रेरित है, जिसका किरदार यश ने निभाया है। हम इस वीडियो के अगले भाग में उसके जीवन के बारे में चर्चा करेंगे।

लेख-

ऋचा मिश्रा

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